श्री हनुमान जी के पूजन के लिए हमें सर्वप्रथम स्नान कर शुद्ध होना चाहिए इसके पश्चात हनुमान चालीसा हिंदी में PDF सभी पूजन सामग्री लेकर हमें एक ऐसे एकांतवास एकांत स्थान या घर में बने हुए मंदिर में बैठना चाहिए| हमें साथ में पूजा सामग्री जैसे चावल पुष्प दुर्गा कुमकुम इत्यादि लेकर श्री हनुमान जी की प्रतिमा श्री राम जी के दरबार का चित्र के सामने बैठना चाहिए|
इसके बाद एकांतवास में ध्यान लगाकर हमें हनुमान जी का ध्यान करना चाहिए इसके पश्चात् हनुमान चालीसा हिंदी में PDF का पाठ पूरा करना चाहिए और जिस तरह हम हनुमान जी की चालीसा का पाठ करें उसी तरह हमारे मन में हृदय में भी भाव उत्पन्न होना चाहिए।
हनुमान चालीसा हिन्दी में PDF | Jai Hanuman Gyan Gun Sagar
दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार
बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकारचौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१॥राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥महाबीर बिक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुंडल कुँचित केसा॥४॥हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेऊ साजे॥५॥शंकर सुवन केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जगवंदन॥६॥विद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर॥७॥प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मनबसिया॥८॥सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा
विकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचंद्र के काज सवाँरे॥१०॥लाय सजीवन लखन जियाए
श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥११॥रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई॥१२॥सहस बदन तुम्हरो जस गावै
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥१३॥सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥१५॥तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना
लंकेश्वर भये सब जग जाना॥१७॥जुग सहस्त्र जोजन पर भानू
लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥१८॥प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही
जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥१९॥दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥राम दुआरे तुम रखवारे
होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥सब सुख लहैं तुम्हारी सरना
तुम रक्षक काहु को डरना॥२२॥आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक तै कापै॥२३॥भूत पिशाच निकट नहि आवै
महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥नासै रोग हरे सब पीरा
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥संकट तै हनुमान छुडावै
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥२६॥सब पर राम तपस्वी राजा
तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥और मनोरथ जो कोई लावै
सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥चारों जुग परताप तुम्हारा
है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥साधु संत के तुम रखवारे
असुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता
अस बर दीन जानकी माता॥३१॥राम रसायन तुम्हरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥तुम्हरे भजन राम को पावै
जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥अंतकाल रघुवरपुर जाई
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥३४॥और देवता चित्त ना धरई
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥३५॥संकट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥जै जै जै हनुमान गुसाईँ
कृपा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥जो सत बार पाठ कर कोई
छूटहि बंदि महा सुख होई॥३८॥जो यह पढ़े हनुमान चालीसा
होय सिद्ध साखी गौरीसा॥३९॥तुलसीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥४०॥दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

हनुमान आरती इन हिंदी PDF
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके।।
अंजनि पुत्र महाबलदायी। संतान के प्रभु सदा सहाई।
दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारी सिया सुध लाए।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।
लंका जारी असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आणि संजीवन प्राण उबारे।
पैठी पताल तोरि जमकारे। अहिरावण की भुजा उखाड़े।
बाएं भुजा असुर दल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे।
सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे।
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई।
लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई।
जो हनुमानजी की आरती गावै। बसी बैकुंठ परमपद पावै।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।
Hanuman Chalisa ka Arth | हनुमान चालीसा हिंदी में अर्थ सहित PDF
मित्रों हम सब हनुमान चालीसा पढते हैं, सब रटा रटाया।
क्या हमें चालीसा पढते समय पता भी होता है कि हम हनुमानजी से क्या कह रहे हैं या क्या मांग रहे हैं?
बस रटा रटाया बोलते जाते हैं। आनंद और फल शायद तभी मिलेगा जब हमें इसका मतलब भी पता हो।
तो लीजिए पेश है श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित!!
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श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।
📯《अर्थ》→ गुरु महाराज के चरण.कमलों की धूलि से अपने मन रुपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला हे।★
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बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।★
📯《अर्थ》→ हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन.करता हूँ। आप तो जानते ही हैं, कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सदबुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कर दीजिए।★
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जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥1॥★
📯《अर्थ 》→ श्री हनुमान जी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों,स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।★
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राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥2॥★
📯《अर्थ》→ हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नही है।★
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महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥★
📯《अर्थ》→ हे महावीर बजरंग बली! आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, और अच्छी बुद्धि वालो के साथी, सहायक है।★
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कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥★
📯《अर्थ》→ आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।★
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हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे, काँधे मूँज जनेऊ साजै॥5॥★
📯《अर्थ》→ आपके हाथ मे बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।★
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शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥★
📯《अर्थ 》→ हे शंकर के अवतार! हे केसरी नंदन! आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर मे वन्दना होती है।★
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विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥7॥★
📯《अर्थ 》→ आप प्रकान्ड विद्या निधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए आतुर रहते है।★
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प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥8॥★
📯《अर्थ 》→ आप श्री राम चरित सुनने मे आनन्द रस लेते है। श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय मे बसे रहते है।★
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सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रुप धरि लंक जरावा॥9॥★
📯《अर्थ》→ आपने अपना बहुत छोटा रुप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके.लंका को जलाया।★
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भीम रुप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज संवारे॥10॥★
📯《अर्थ 》→ आपने विकराल रुप धारण करके.राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के उदेश्यों को सफल कराया।★
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लाय सजीवन लखन जियाये, श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥★
📯《अर्थ 》→ आपने संजीवनी बुटी लाकर लक्ष्मणजी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।★
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रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥12॥★
📯《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।★
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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं, अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥13॥★
📯《अर्थ 》→ श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से.लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।★
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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद,सारद सहित अहीसा॥14॥★
📯《अर्थ》→श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।★
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जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते, कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥15॥★
📯《अर्थ 》→ यमराज,कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।★
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तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥16॥★
📯《अर्थ 》→ आपनें सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने।★
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तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥17॥★
📯《अर्थ 》→ आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।★
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जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥18॥★
📯《अर्थ 》→ जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे। दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझ कर निगल लिया।★
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प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥19॥★
📯《अर्थ 》→ आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुँह मे रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नही है।★
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दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20॥★
📯《अर्थ 》→ संसार मे जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।★
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राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥21॥★
📯《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप.रखवाले है, जिसमे आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नही मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।★
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सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू.को डरना॥22॥★
📯《अर्थ 》→ जो भी आपकी शरण मे आते है, उस सभी को आन्नद प्राप्त होता है, और जब आप रक्षक. है, तो फिर किसी का डर नही रहता।★
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आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हाँक ते काँपै॥23॥★
📯《अर्थ. 》→ आपके सिवाय आपके वेग को कोई नही रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते है।★
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भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥24॥★
📯《अर्थ 》→ जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहाँ भूत, पिशाच पास भी नही फटक सकते।★
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नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा॥25॥★
📯《अर्थ 》→ वीर हनुमान जी! आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है,और सब पीड़ा मिट जाती है।★
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संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26॥★
📯《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! विचार करने मे, कर्म करने मे और बोलने मे, जिनका ध्यान आपमे रहता है, उनको सब संकटो से आप छुड़ाते है।★
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सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥ 27॥★
📯《अर्थ 》→ तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यो को आपने सहज मे कर दिया।★
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और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥★
📯《अर्थ 》→ जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन मे कोई सीमा नही होती।★
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चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥29॥★
📯《अर्थ 》→ चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग मे आपका यश फैला हुआ है, जगत मे आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।★
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साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥30॥★
📯《अर्थ 》→ हे श्री राम के दुलारे ! आप.सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।★
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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥३१॥★
📯《अर्थ 》→ आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।★
1.) अणिमा → जिससे साधक किसी को दिखाई नही पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ मे प्रवेश कर.जाता है।★
2.) महिमा → जिसमे योगी अपने को बहुत बड़ा बना देता है।★
3.) गरिमा → जिससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।★
4.) लघिमा → जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है।★
5.) प्राप्ति → जिससे इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है।★
6.) प्राकाम्य → जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी मे समा सकता है, आकाश मे उड़ सकता है।★
7.) ईशित्व → जिससे सब पर शासन का सामर्थय हो जाता है।★
8.)वशित्व → जिससे दूसरो को वश मे किया जाता है।★
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राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥★
📯《अर्थ 》→ आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण मे रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।★
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तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥★
📯《अर्थ 》→ आपका भजन करने से श्री राम.जी प्राप्त होते है, और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर होते है।★
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अन्त काल रघुबर पुर जाई, जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥34॥★
📯《अर्थ 》→ अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।★
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और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥★
📯《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नही रहती।★
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संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥★
📯《अर्थ 》→ हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।★
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जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37॥★
📯《अर्थ 》→ हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।★
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जो सत बार पाठ कर कोई, छुटहि बँदि महा सुख होई॥38॥★
📯《अर्थ 》→ जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परमानन्द मिलेगा।★
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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥39॥★
📯《अर्थ 》→ भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।★
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तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥40॥★
📯《अर्थ 》→ हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है।इसलिए आप उसके हृदय मे निवास कीजिए।★
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पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥★
📯《अर्थ 》→ हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द मंगलो के स्वरुप है। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय मे निवास कीजिए।★
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🌹सीता राम दुत हनुमान जी को समर्पित🌹
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🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏
🙏🌹जय जय श्री सीताराम 🌹🙏
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Hanuman Chalisa in Telugu
॥ దోహా- ॥శ్రీగురు చరన సరోజ రజ నిజ మను ముకుర సుధార ।
బరణౌం రఘువర విమల యశ జో దాయకు ఫలచార ॥
బుద్ధిహీన తను జానికే సుమిరౌం పవనకుమార ।
బల బుద్ధి విద్యా దేహు మోహిఁ హరహు కలేస వికార ॥
॥ చౌపాయీ- ॥జయ హనుమాన జ్ఞాన గుణ సాగర ।
జయ కపీశ తిహుం లోక ఉజాగర ॥౧॥
రామ దూత అతులిత బల ధామా ।
అంజనిపుత్ర పవనసుత నామా ॥౨॥
మహావీర విక్రమ బజరంగీ ।
కుమతి నివార సుమతి కే సంగీ ॥౩॥
కంచన బరన విరాజ సువేసా ।
కానన కుండల కుంచిత కేశా ॥౪॥
హాథ వజ్ర ఔ ధ్వజా విరాజై ।
కాంధే మూంజ జనేఊ సాజై ॥౫॥
సంకర సువన కేసరీనందన ।
తేజ ప్రతాప మహా జగ వందన ॥౬॥
విద్యావాన గుణీ అతిచాతుర ।
రామ కాజ కరిబే కో ఆతుర ॥౭॥
ప్రభు చరిత్ర సునిబే కో రసియా ।
రామ లఖన సీతా మన బసియా ॥౮॥
సూక్ష్మ రూప ధరి సియహిఁ దిఖావా ।
వికట రూప ధరి లంక జరావా ॥౯॥
భీమ రూప ధరి అసుర సంహారే ।
రామచంద్ర కే కాజ సంవారే ॥౧౦॥
లాయ సజీవన లఖన జియాయే ।
శ్రీరఘువీర హరషి ఉర లాయే ॥౧౧॥
రఘుపతి కీన్హీ బహుత బడాయీ ।
తుమ మమ ప్రియ భరత సమ భాయీ ॥౧౨॥
సహస వదన తుమ్హరో యస గావైఁ ।
అస కహి శ్రీపతి కంఠ లగావైఁ ॥౧౩॥
సనకాదిక బ్రహ్మాది మునీశా ।
నారద శారద సహిత అహీశా ॥౧౪॥
యమ కుబేర దిక్పాల జహాం తే ।
కవి కోవిద కహి సకే కహాం తే ॥౧౫॥
తుమ ఉపకార సుగ్రీవహిం కీన్హా ।
రామ మిలాయ రాజ పద దీన్హా ॥౧౬॥
తుమ్హరో మంత్ర విభీషన మానా ।
లంకేశ్వర భయే సబ జగ జానా॥౧౭॥
యుగ సహస్ర యోజన పర భానూ ।
లీల్యో తాహి మధుర ఫల జానూ ॥౧౮॥
ప్రభు ముద్రికా మేలి ముఖ మాహీఁ ।
జలధి లాంఘి గయే అచరజ నాహీఁ ॥౧౯॥
దుర్గమ కాజ జగత కే జేతే ।
సుగమ అనుగ్రహ తుమ్హరే తేతే ॥౨౦॥
రామ దుఆరే తుమ రఖవారే ।
హోత న ఆజ్ఞా బిను పైసారే ॥౨౧॥
సబ సుఖ లహై తుమ్హారీ సరనా ।
తుమ రక్షక కాహూ కో డర నా ॥౨౨॥
ఆపన తేజ సంహారో ఆపై ।
తీనోఁ లోక హాంక తేఁ కాంపై ॥౨౩॥
భూత పిశాచ నికట నహిఁ ఆవై ।
మహావీర జబ నామ సునావై ॥౨౪॥
నాశై రోగ హరై సబ పీరా ।
జపత నిరంతర హనుమత వీరా ॥౨౫॥
సంకటసే హనుమాన ఛుడావై ।
మన క్రమ వచన ధ్యాన జో లావై ॥౨౬॥
సబ పర రామ తపస్వీ రాజా ।
తిన కే కాజ సకల తుమ సాజా ॥౨౭॥
ఔర మనోరథ జో కోయీ లావై ।
తాసు అమిత జీవన ఫల పావై ॥౨౮॥
చారోఁ యుగ ప్రతాప తుమ్హారా ।
హై ప్రసిద్ధ జగత ఉజియారా ॥౨౯॥
సాధు సంత కే తుమ రఖవారే ।
అసుర నికందన రామ దులారే ॥౩౦॥
అష్ట సిద్ధి నవ నిధి కే దాతా ।
అస బర దీన జానకీ మాతా ॥౩౧॥
రామ రసాయన తుమ్హరే పాసా ।
సదా రహో రఘుపతి కే దాసా ॥౩౨॥
తుమ్హరే భజన రామ కో పావై ।
జన్మ జన్మ కే దుఖ బిసరావై ॥౩౩॥
అంత కాల రఘుపతి పుర జాయీ ।
జహాఁ జన్మి హరిభక్త కహాయీ ॥౩౪॥
ఔర దేవతా చిత్త న ధరయీ ।
హనుమత సేయి సర్వ సుఖ కరయీ ॥౩౫॥
సంకట కటై మిటై సబ పీరా ।
జో సుమిరై హనుమత బలవీరా ॥౩౬॥
జై జై జై హనుమాన గోసాయీఁ ।
కృపా కరహు గురు దేవ కీ నాయీఁ ॥౩౭॥
యహ శత బార పాఠ కర కోయీ ।
ఛూటహి బంది మహా సుఖ హోయీ ॥౩౮॥
జో యహ పఢై హనుమాన చలీసా ।
హోయ సిద్ధి సాఖీ గౌరీసా ॥౩౯॥
తులసీదాస సదా హరి చేరా ।
కీజై నాథ హృదయ మహ డేరా ॥౪౦॥
॥ దోహా- ॥పవనతనయ సంకట హరణ ।
మంగల మూరతి రూప ॥
రామ లఖన సీతా సహిత ।
హృదయ బసహు సుర భూప ॥
Hanuman Chalisa in Kannada
ದೋಹಾ
ಶ್ರೀ ಗುರು ಚರಣ ಸರೋಜ ರಜ ನಿಜಮನ ಮುಕುರ ಸುಧಾರಿ ।
ವರಣೌ ರಘುವರ ವಿಮಲಯಶ ಜೋ ದಾಯಕ ಫಲಚಾರಿ ॥
ಬುದ್ಧಿಹೀನ ತನುಜಾನಿಕೈ ಸುಮಿರೌ ಪವನ ಕುಮಾರ ।
ಬಲ ಬುದ್ಧಿ ವಿದ್ಯಾ ದೇಹು ಮೋಹಿ ಹರಹು ಕಲೇಶ ವಿಕಾರ ॥
ಧ್ಯಾನಂ
ಗೋಷ್ಪದೀಕೃತ ವಾರಾಶಿಂ ಮಶಕೀಕೃತ ರಾಕ್ಷಸಮ್ ।
ರಾಮಾಯಣ ಮಹಾಮಾಲಾ ರತ್ನಂ ವಂದೇ-(ಅ)ನಿಲಾತ್ಮಜಮ್ ॥
ಯತ್ರ ಯತ್ರ ರಘುನಾಥ ಕೀರ್ತನಂ ತತ್ರ ತತ್ರ ಕೃತಮಸ್ತಕಾಂಜಲಿಮ್ ।
ಭಾಷ್ಪವಾರಿ ಪರಿಪೂರ್ಣ ಲೋಚನಂ ಮಾರುತಿಂ ನಮತ ರಾಕ್ಷಸಾಂತಕಮ್ ॥
ಚೌಪಾಈ
ಜಯ ಹನುಮಾನ ಜ್ಞಾನ ಗುಣ ಸಾಗರ ।
ಜಯ ಕಪೀಶ ತಿಹು ಲೋಕ ಉಜಾಗರ ॥ 1 ॥
ರಾಮದೂತ ಅತುಲಿತ ಬಲಧಾಮಾ ।
ಅಂಜನಿ ಪುತ್ರ ಪವನಸುತ ನಾಮಾ ॥ 2 ॥
ಮಹಾವೀರ ವಿಕ್ರಮ ಬಜರಂಗೀ ।
ಕುಮತಿ ನಿವಾರ ಸುಮತಿ ಕೇ ಸಂಗೀ ॥3 ॥
ಕಂಚನ ವರಣ ವಿರಾಜ ಸುವೇಶಾ ।
ಕಾನನ ಕುಂಡಲ ಕುಂಚಿತ ಕೇಶಾ ॥ 4 ॥
ಹಾಥವಜ್ರ ಔ ಧ್ವಜಾ ವಿರಾಜೈ ।
ಕಾಂಥೇ ಮೂಂಜ ಜನೇವೂ ಸಾಜೈ ॥ 5॥
ಶಂಕರ ಸುವನ ಕೇಸರೀ ನಂದನ ।
ತೇಜ ಪ್ರತಾಪ ಮಹಾಜಗ ವಂದನ ॥ 6 ॥
ವಿದ್ಯಾವಾನ ಗುಣೀ ಅತಿ ಚಾತುರ ।
ರಾಮ ಕಾಜ ಕರಿವೇ ಕೋ ಆತುರ ॥ 7 ॥
ಪ್ರಭು ಚರಿತ್ರ ಸುನಿವೇ ಕೋ ರಸಿಯಾ ।
ರಾಮಲಖನ ಸೀತಾ ಮನ ಬಸಿಯಾ ॥ 8॥
ಸೂಕ್ಷ್ಮ ರೂಪಧರಿ ಸಿಯಹಿ ದಿಖಾವಾ ।
ವಿಕಟ ರೂಪಧರಿ ಲಂಕ ಜಲಾವಾ ॥ 9 ॥
ಭೀಮ ರೂಪಧರಿ ಅಸುರ ಸಂಹಾರೇ ।
ರಾಮಚಂದ್ರ ಕೇ ಕಾಜ ಸಂವಾರೇ ॥ 10 ॥
ಲಾಯ ಸಂಜೀವನ ಲಖನ ಜಿಯಾಯೇ ।
ಶ್ರೀ ರಘುವೀರ ಹರಷಿ ಉರಲಾಯೇ ॥ 11 ॥
ರಘುಪತಿ ಕೀನ್ಹೀ ಬಹುತ ಬಡಾಯೀ ।
ತುಮ ಮಮ ಪ್ರಿಯ ಭರತ ಸಮ ಭಾಯೀ ॥ 12 ॥
ಸಹಸ್ರ ವದನ ತುಮ್ಹರೋ ಯಶಗಾವೈ ।
ಅಸ ಕಹಿ ಶ್ರೀಪತಿ ಕಂಠ ಲಗಾವೈ ॥ 13 ॥
ಸನಕಾದಿಕ ಬ್ರಹ್ಮಾದಿ ಮುನೀಶಾ ।
ನಾರದ ಶಾರದ ಸಹಿತ ಅಹೀಶಾ ॥ 14 ॥
ಯಮ ಕುಬೇರ ದಿಗಪಾಲ ಜಹಾಂ ತೇ ।
ಕವಿ ಕೋವಿದ ಕಹಿ ಸಕೇ ಕಹಾಂ ತೇ ॥ 15 ॥
ತುಮ ಉಪಕಾರ ಸುಗ್ರೀವಹಿ ಕೀನ್ಹಾ ।
ರಾಮ ಮಿಲಾಯ ರಾಜಪದ ದೀನ್ಹಾ ॥ 16 ॥
ತುಮ್ಹರೋ ಮಂತ್ರ ವಿಭೀಷಣ ಮಾನಾ ।
ಲಂಕೇಶ್ವರ ಭಯೇ ಸಬ ಜಗ ಜಾನಾ ॥ 17 ॥
ಯುಗ ಸಹಸ್ರ ಯೋಜನ ಪರ ಭಾನೂ ।
ಲೀಲ್ಯೋ ತಾಹಿ ಮಧುರ ಫಲ ಜಾನೂ ॥ 18 ॥
ಪ್ರಭು ಮುದ್ರಿಕಾ ಮೇಲಿ ಮುಖ ಮಾಹೀ ।
ಜಲಧಿ ಲಾಂಘಿ ಗಯೇ ಅಚರಜ ನಾಹೀ ॥ 19 ॥
ದುರ್ಗಮ ಕಾಜ ಜಗತ ಕೇ ಜೇತೇ ।
ಸುಗಮ ಅನುಗ್ರಹ ತುಮ್ಹರೇ ತೇತೇ ॥ 20 ॥
ರಾಮ ದುಆರೇ ತುಮ ರಖವಾರೇ ।
ಹೋತ ನ ಆಜ್ಞಾ ಬಿನು ಪೈಸಾರೇ ॥ 21 ॥
ಸಬ ಸುಖ ಲಹೈ ತುಮ್ಹಾರೀ ಶರಣಾ ।
ತುಮ ರಕ್ಷಕ ಕಾಹೂ ಕೋ ಡರ ನಾ ॥ 22 ॥
ಆಪನ ತೇಜ ಸಮ್ಹಾರೋ ಆಪೈ ।
ತೀನೋಂ ಲೋಕ ಹಾಂಕ ತೇ ಕಾಂಪೈ ॥ 23 ॥
ಭೂತ ಪಿಶಾಚ ನಿಕಟ ನಹಿ ಆವೈ ।
ಮಹವೀರ ಜಬ ನಾಮ ಸುನಾವೈ ॥ 24 ॥
ನಾಸೈ ರೋಗ ಹರೈ ಸಬ ಪೀರಾ ।
ಜಪತ ನಿರಂತರ ಹನುಮತ ವೀರಾ ॥ 25 ॥
ಸಂಕಟ ಸೇ ಹನುಮಾನ ಛುಡಾವೈ ।
ಮನ ಕ್ರಮ ವಚನ ಧ್ಯಾನ ಜೋ ಲಾವೈ ॥ 26 ॥
ಸಬ ಪರ ರಾಮ ತಪಸ್ವೀ ರಾಜಾ ।
ತಿನಕೇ ಕಾಜ ಸಕಲ ತುಮ ಸಾಜಾ ॥ 27 ॥
ಔರ ಮನೋರಧ ಜೋ ಕೋಯಿ ಲಾವೈ ।
ತಾಸು ಅಮಿತ ಜೀವನ ಫಲ ಪಾವೈ ॥ 28 ॥
ಚಾರೋ ಯುಗ ಪ್ರತಾಪ ತುಮ್ಹಾರಾ ।
ಹೈ ಪ್ರಸಿದ್ಧ ಜಗತ ಉಜಿಯಾರಾ ॥ 29 ॥
ಸಾಧು ಸಂತ ಕೇ ತುಮ ರಖವಾರೇ ।
ಅಸುರ ನಿಕಂದನ ರಾಮ ದುಲಾರೇ ॥ 30 ॥
ಅಷ್ಠಸಿದ್ಧಿ ನವ ನಿಧಿ ಕೇ ದಾತಾ ।
ಅಸ ವರ ದೀನ್ಹ ಜಾನಕೀ ಮಾತಾ ॥ 31 ॥
ರಾಮ ರಸಾಯನ ತುಮ್ಹಾರೇ ಪಾಸಾ ।
ಸದಾ ರಹೋ ರಘುಪತಿ ಕೇ ದಾಸಾ ॥ 32 ॥
ತುಮ್ಹರೇ ಭಜನ ರಾಮಕೋ ಪಾವೈ ।
ಜನ್ಮ ಜನ್ಮ ಕೇ ದುಖ ಬಿಸರಾವೈ ॥ 33 ॥
ಅಂತ ಕಾಲ ರಘುಪತಿ ಪುರಜಾಯೀ ।
ಜಹಾಂ ಜನ್ಮ ಹರಿಭಕ್ತ ಕಹಾಯೀ ॥ 34 ॥
ಔರ ದೇವತಾ ಚಿತ್ತ ನ ಧರಯೀ ।
ಹನುಮತ ಸೇಯಿ ಸರ್ವ ಸುಖ ಕರಯೀ ॥ 35 ॥
ಸಂಕಟ ಕ(ಹ)ಟೈ ಮಿಟೈ ಸಬ ಪೀರಾ ।
ಜೋ ಸುಮಿರೈ ಹನುಮತ ಬಲ ವೀರಾ ॥ 36 ॥
ಜೈ ಜೈ ಜೈ ಹನುಮಾನ ಗೋಸಾಯೀ ।
ಕೃಪಾ ಕರಹು ಗುರುದೇವ ಕೀ ನಾಯೀ ॥ 37 ॥
ಜೋ ಶತ ವಾರ ಪಾಠ ಕರ ಕೋಯೀ ।
ಛೂಟಹಿ ಬಂದಿ ಮಹಾ ಸುಖ ಹೋಯೀ ॥ 38 ॥
ಜೋ ಯಹ ಪಡೈ ಹನುಮಾನ ಚಾಲೀಸಾ ।
ಹೋಯ ಸಿದ್ಧಿ ಸಾಖೀ ಗೌರೀಶಾ ॥ 39 ॥
ತುಲಸೀದಾಸ ಸದಾ ಹರಿ ಚೇರಾ ।
ಕೀಜೈ ನಾಥ ಹೃದಯ ಮಹ ಡೇರಾ ॥ 40 ॥
ದೋಹಾ
ಪವನ ತನಯ ಸಂಕಟ ಹರಣ – ಮಂಗಳ ಮೂರತಿ ರೂಪ್ ।
ರಾಮ ಲಖನ ಸೀತಾ ಸಹಿತ – ಹೃದಯ ಬಸಹು ಸುರಭೂಪ್ ॥
ಸಿಯಾವರ ರಾಮಚಂದ್ರಕೀ ಜಯ । ಪವನಸುತ ಹನುಮಾನಕೀ ಜಯ । ಬೋಲೋ ಭಾಯೀ ಸಬ ಸಂತನಕೀ ಜಯ ।
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