श्री वेंकटेश्वर तिरुपति बालाजी मंदिर (Tirupati Balaji Temple) भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के चित्तूर जीले की तिरुमाला पर्वत पर स्थित है और यह हिन्दू धर्म का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। इस मंदिर का नाम वेंकटेश्वर बालाजी के रूप में प्रसिद्ध है, और यह भगवान विष्णु को समर्पित है। यहां पर हर साल लाखों भक्त आते हैं और इस मंदिर का दर्शन करने के लिए भक्तगण लम्बी लाइन लगाकर घंटो प्रतीक्षा करते हैं।
तिरुपति बालाजी मंदिर की कहानी : तिरुपति बालाजी मंदिर कहा है
श्री वेंकटेश्वर बालाजी मंदिर का निर्माण 10वीं शताब्दी में आंध्र प्रदेश के चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के समय में आंध्र प्रदेश राज्य के चित्तूर जीले की तिरुमाला पर्वत पर हुआ था। इस मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है और यह भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
कलयुग के प्रारंभ होने पर आदि वराह वेंकटद्री पर्वत छोड़कर अपने लोक चले गए जिसके चलते ब्रह्मा जी चिंतित रहने लगे और नारद जी से विष्णु को पुन लाने के लिए कहा गया| नारद एक दिन गंगा के तट पर गए जहां पर ऋषि इस बात को लेकर भ्रम में थे, कि हमारी यज्ञ का फल त्रिदेवों में से किसे मिलेगा नारद जी ने उनके संका का समाधान हेतु भृगु ऋषि को यह कार्य सोपा|
भृगु ऋषि सभी देवताओं के पास गए, लेकिन भगवान शिव और विष्णु जी ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया तो वह क्रोधित हो गए| क्रोधित होकर भृगु ऋषि ने विष्णु जी की छाती पर एक लात मार दी इसके बावजूद विष्णु जी ने ऋषि के पैरों की यह सोचकर मालिश की की कहानी उनके पैरों में दर्द न होने लगा हो| यह देखकर ऋषि प्रभु को सभी ऋषियों को उत्तर दिया कि उनकी यज्ञ का फल हमेशा भगवान विष्णु को समर्पित होगा |
परंतु श्री हरि विष्णु की छाती पर लात मारने कारण माता लक्ष्मी क्रोधित हो गई| उन्हें अपने पति का अपमान सहन नहीं हुआ और वह चाहती थी, कि भगवान विष्णु ऋषि भृगु को दंडित करें परंतु ऐसा नहीं हुआ परिणाम स्वरुप उन्होंने बैकुंठ छोड़ दिया| और तपस्या करने के लिए धरती पर आ गई और कर्वीरापुर कोल्हापुर में ध्यान करना शुरू कर दिया | इधर विष्णु जी इस बात से दुखी थे की माता लक्ष्मी उन्हें छोड़ कर चली गई| कुछ समय बाद में भी धरती पर आकर माता लक्ष्मी को ढूंढने लगे जंगल और पहाड़ियों पर भड़काने के बाद भी वह माता को खोज नहीं पाए|
आखिर परेशान होकर विष्णु जी वेंकटद्री पर्वत में एक चींटी के आश्रम में विश्राम करने लगे यह देखकर ब्रह्मा जी के उनकी सहायता करने के लिए फैसला किया| वह गाय और बछड़े का रूप धारण कर माता लक्ष्मी के पास गए देवी लक्ष्मी ने उन्हें देखा और उसे वक्त के शाशक चोल राजा को उन्हें सौंप दिया| राजा ने उसे चरवाहे को सौंप दिया परंतु वह गाय सिर्फ विष्णु जी की रूप श्रीनिवास को ही दूध देती थी|
जिस कारण चरवाहे ने उसे गाय को मारने का प्रयास किया। तब श्रीनिवास ने चरवाहे पर हमला करके गाय को बचाया | और क्रोधित होकर उन्होंने चोल राजा को एक राक्षश के रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया | राजा ने दया की प्रार्थना की तब श्रीनिवास ने कहा कि राजा को दया तब मिलेंगे जब वह अपनी बेटी पद्मावती का विवाह मुझे करेगा यह बात जब देवी लक्ष्मी पद्मावती को पता चली तो वह वहां आई और तब उन्होंने श्री हरि को पहचान लिया|
इसके बाद भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी एक दूसरे से मिल गए और इसके बाद में पत्थर में बदल गए फिर ब्रह्मा जी और शिव जी ने हस्तक्षेप करके लोगों को इस अवतार के उद्देश्य से अवगत कराया कहते हैं कि किसी काल में श्री हरि विष्णु ने वेंकटेश्वर स्वामी के रूप में अवतार लिया था| यह भी कहा जाता है कलयुग के कष्ट से लोगों को बचाने के लिए उन्होंने यह अवतार लिया था इसलिए भगवान के रूप में मां लक्ष्मी भी समाहित है इसलिए यह बालाजी को स्त्री और पुरुष दोनों पुरुष पहनने की यहां परंपरा है बालाजी को प्रतिदिन धोती और साड़ी से सजाया जाता है।
तिरुपति बालाजी मंदिर में बाल क्यों काटते हैं
बाल दान देने के पीछे का कारण यह माना जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर कुबेर से लिए गए रन को चुकाते हैं, कथानुसार जब भगवान वेंकटेश्वर का पद्मावती से विवाह हुआ था, तब एक परंपरा के अनुसार वर्ग को शादी से पहले कन्या के परिवार को एक तरह का को शुल्क देना होता था|
लेकिन भगवान वेंकटेश्वर यह शुल्क देने में असमर्थ थे इसलिए उन्होंने कुबेर देवता से ऋण लेकर पद्मावती से विवाह किया और वचन दिया कि कलयुग के अंत तक कुबेर का सारा ऋण चुका देंगे , उन्होंने देवी लक्ष्मी को वचन देते हुए कहा कि जो भी वक्त उनका ऋण लौटाने में उनकी मदद करेंगे देवी लक्ष्मी उन्हें उसका 10 गुना ज्यादा धन देंगे इस कारण तिरुपति जाने वाले विष्णु भगवान पर आस्था रखने वाले भक्त बालों का दान कर भगवान विष्णु का ऋण चुकाने में उनकी मदद करते हैं
Tirupati Balaji Mandir मंदिर से जुडी रहस्यमयी बाते
भारत में कई चमत्कारिक और रहस्यमयी मंदिर हैं जिसमें दक्षिण भारत में स्थित भगवान तिरुपति बालाजी का मंदिर भी शामिल है। भगवान तिरुपति बालाजी का चमत्कारिक और रहस्यमयी मंदिर भारत समेत पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यह मंदिर भारतीय वास्तु कला और शिल्प कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। तिरुपति बालाजी मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। यह मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुमला पर्वत पर स्थित है और यह भारत के मुख्य तीर्थ स्थलों में से एक है।
तिरुपति बालाजी का वास्तविक नाम श्री वेंकटेश्वर स्वामी है जो स्वयं भगवान विष्णु हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, भगवान श्री वेंकटेश्वर अपनी पत्नी पद्मावती के साथ तिरुमला में निवास करते हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से भगवान वेंकटेश्वर के सामने प्रार्थना करते हैं, उनकी सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं। भक्त अपनी श्रद्धा के मुताबिक, यहां आकर तिरुपति मंदिर में अपने बाल दान करते हैं।
कहा जाता है भगवान वेंकटेश्वर स्वामी की मूर्ति पर बाल लगे हैं जो असली हैं। यह बाल कभी भी उलझते नहीं हैं और हमेशा मुलायम रहते हैं। मान्यता है कि यहां भगवान खुद विराजमान हैं।
जब मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करेंगे तो ऐसा लगेगा कि भगवान श्री वेंकेटेश्वर की मूर्ति गर्भ गृह के मध्य में है। लेकिन आप जैसे ही गर्भगृह के बाहर आएंगे तो चौंक जाएंगे क्योंकि बाहर आकर ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान की प्रतिमा दाहिनी तरफ स्थित है। अब यह सिर्फ भ्रम है या कोई भगवान का चमत्कार इसका पता आज तक कोई नहीं लगा पाया है।
मान्यता है कि भगवान के इस रूप में मां लक्ष्मी भी समाहित हैं जिसकी वजह से श्री वेंकेटेश्वर स्वामी को स्त्री और पुरुष दोनों के वस्त्र पहनाने की परम्परा है।
तिरुपति बालाजी मंदिर की विशेषता:
- तिरुपति लड्डू: यहां के प्रसाद के रूप में स्वादिष्ट तिरुपति लड्डू बहुत प्रसिद्ध हैं और इन्हें पूजा के प्रसाद का रूप माना जाता है।
- सेवा और ध्यान: इस मंदिर में भक्तों के लिए अनेक प्रकार की पूजा और सेवाएं उपलब्ध हैं, जिनमें सुप्रभात सेवा, अर्चना, अखण्ड दीप, धूप आरती, आदि शामिल हैं।
- वाहन सेवा: इस मंदिर में भगवान की वाहनों की पूजा और सेवा भी होती है, जैसे कि गरुड़ वाहन और हनुमानजी की वाहन सेवा।
- धार्मिक आधार: यह मंदिर हिन्दू धर्म के आधारिक मूल्यों और धर्म के लिए एक अद्वितीय स्थल है, जहां भक्त भगवान की आराधना और भक्ति करते हैं।
तिरुपति बालाजी दर्शन की प्रक्रिया:
तिरुपति बालाजी मंदिर में दर्शन की प्रक्रिया सुव्यवस्थित है। भक्तों को श्रद्धापूर्वक दर्शन के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है,
भगवान तिरुपति बालाजी के दर्शन हेतु 3 प्रकार से दर्शन कर सकते है |
1 . तिरुपति व्य्कतेश्वर बालाजी के दर्शन हेतु जब आप तिरुपति शहर पहुचते है , वहां से आपको तिरुमाला पर्वत पर जाना होता है जो की लगभग १५ किलोमीटर दूर है | इसके पहले ही आपको तिरुपति शहर में तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम ट्रस्ट के श्रीनिवासम धर्मशाला में दर्शन हेतु निशुल्क टिकेट मिलते है , जिसमे आपको दर्शन का समय दिया जाता है | जिसे लेकर आप तिरुमाला पर्वत पर वाहनों से जा सकते है , जहा आप अपने नियत समय के पहले पहुच कर नंबर लगाकर प्रतीक्षालय कमरों में रुककर अपने नंबर का इंतजार कर दर्शन कर सकते है |
2. जो भक्तगण दर्शन हेतु प्रतीक्षा न कर जल्दी ही दर्शन लाभ लेना चाहते है | उनके लिए शशुल्क ३०० रूपये की टिकेट आप ऑनलाइन याँ टिकेट कौंतर से लेकर मंदिर प्रागंन के दर्शन लाइन में लगाकर 2 से 4 घंटो में दर्शन का पुण्यलाभ ले सकते है | जिसकी लिंक तिरुपति दर्शन पर क्लीक करे |
3. कुछ भक्तगण तिरुपति शहर से तिरुमाला पर्वत की और पैदल जाना चाहते है तो उनके लिए पैदल ट्रेक की व्यवस्था है जिससे वे पैदल जाकर जल्दी ही दर्शन कर सकते है |
FAQ:-
तिरुपति बालाजी में क्या फेमस है?
तिरुपति बालाजी भगवान अपने भक्तो की धन सम्पदा की इच्छा पूरा करने के लिए विश्व प्रसिद्द है |
तिरुपति बालाजी की असली कहानी क्या है?
तिरुपति बालाजी का वास्तविक नाम श्री वेंकटेश्वर स्वामी है जो स्वयं भगवान विष्णु हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, भगवान श्री वेंकटेश्वर अपनी पत्नी पद्मावती के साथ तिरुमला में निवास करते हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से भगवान वेंकटेश्वर के सामने प्रार्थना करते हैं, उनकी सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं। भक्त अपनी श्रद्धा के मुताबिक, यहां आकर तिरुपति मंदिर में अपने बाल दान करते हैं।
बालाजी कौन से भगवान को बोलते हैं?
बालाजी भगवान् विष्णु जी को बोलते है | जो की भगवन विष्णु के अवतार है |
तिरुपति दर्शन के लिए कितने दिन चाहिए?
तिरुपति बालाजी के दर्शन हेतु आपको लगभग 2 दिन का समय चाहिए | यदि आपके पास vip पास है तो आपको 1 दिन में दर्शन हो जायेंगे |
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